V.S Awasthi

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हिन्दी दिवस




मैं भी एक इन्सान हूं
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मैं भी एक इन्सान हूं
ईश्वर की सन्तान हूं
मेरे दिल में भी प्यार है
बच्चों का दुलार है
मानवता का भाव है
दिल में एक ठहराव है
मैं भी हंसता हूं,रोता हूं
सपनों को संजोता हू
मैं भी दयावान हूं
मैं भी एक इन्सान हूं
पथिक हूं,पथ में विचरता हूं
गोधुलि बेला में 
भ्रमण पर निकलता हूं
विचरण करते करते
कानों पर एक मासूम के
रोने की आवाज आई
जैसे कोई बच्चा
बुला रहा हो माई- माई
मैं ठहर गया, झाड़ियों में देखा
झाड़ियों से एक बच्ची
के रोने की आवाज आई
जैसे वो कह रही थी
मुझे अकेला क्यों छोड़ गई माई
यह दृश्य देखकर
मेरी आंखें भर आईं
मैं परेशान हूं
मैं भी एक इन्सान हूं
बच्ची ईश्वर को दे रही थी दुहाई
बता मेरे परवरदिगार
मुझे अकेला
क्यों छोड़ गई मेरी माई
नौ महीने मुझे 
 गर्भ में था पाला
अपने रक्त और मांस का 
दिया हमें निवाला
असहनीय पीड़ा सहन कर
धरा पर ले आई
फिर मुझे छोड़ कर
चली क्यों गई माई
क्या मेरा चेहरा था
बहुत बदसूरत
जो मेरी मां देख नहीं पाई
या बेरहमी समाज से
 सतायी गई मेरी माई
इसीलिए अपने पास नहीं
रख पाई मेरी माई
बेटी की सुनकर दुहाई
एकबार फिर मेरी
आंख भर आई
मैं भी एक इन्सान हूं
क्या धरा पर इन्सानियत
नहीं बची मेरे भाई
कि नारी को नारी ही
नहीं रख पाई
उसके जज्बातों को सुनकर
मैं अब तक परेशान हूं
बच्ची की मासूमियत
से हैरान हूं
क्यों कि मैं एक इन्सान हूं

स्वरचित:- विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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5 Comments

बहुत ही भावनात्मक रचना,,,, गोधूलि होता है sir

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Reena yadav

08-Sep-2022 04:07 PM

Very nice 👍

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Bahut khoob 💐👍

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